Virus परमाणु बम से भी ज्यादा खतरनाक
वायरस परमाणु बम से भी खतरनाक

 

अमेरिका ने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम गिराया था तो जापान ने घुटने टेक दिये थे। आज तक उन ज़मीनों को बंजर माना जाता है। पर ये तो पता रहा पूरे विश्व को की इसे कैसे नियंत्रण करना है। जहां छोड़ा जाएगा वही नुकसान करेगा। औऱ उस के बाद आज तक कोई घटना नही हुई।

 

पर ये वायरस जो वुहान से शुरू हुआ था। किसके दिमाग की उपज थी परमाणु बम से भी खतरनाक खोज रही। जो वुहान से आरम्भ हुआ और अभी तक 188 देशों में अपना भयंकर उत्पात मचा रहा है। जिसका अंत नज़र नही आ रहा है पूरा विश्व इसकी चपेट में है। लोग विश्व के उन विकसित देशों को अपना आशियाना बनानां चाह रहे थे कि यहां सुख सुविधाये पूरी उपलब्ध है। अपनी सारी पूंजी बच्चो की शिक्षा में लगा दी कि ये विदेश में सेट हो जायेगा। पर इटली जैसा देश जो इलाज में विश्व मे न. 2 पर आता है। हजारों मौत हो गई है। अमेरिका में संक्रमित संख्या बढ़ती जा रही है। भारत मे भी पूरे देश मे लोक डाउन हो चुका है महामारी विकराल रूप धारण कर रही है। विदेशों से जो लोग आए है उन पर निगरानी रखी जा रही है।

 

और बीमारियों से इस बीमारी में यह समस्या है कि उसके मरीज को सहानभूति ,परिवार का प्यार औऱ इलाज में सहायता और अगर देहांत हो गया तो समाज की उपस्थिति हो जाती है। पर इस बीमारी में वो मरीज का जैसे समाज से सम्पर्क ही खत्म । अभी मैं चाइना का एक वीडियो देख रहा था जिसमे छोटी सी लड़की को कोरोनटाइन में इलाज के लिये रखा गया था और उसकी माँ उससे मिलने आती है तो दोनों दूर से खड़े हुये रो रहे होते है । पास नही आ सकते है। कितना दर्दनाक नज़ारा होता है यह। 

कैसी बीमारी है यह।

 

सभी लोग घरों में बंद , किसी से मिलना नही कोई मर जाये तो वहां जाना नही, सब समाप्त जो सैंकड़ो वर्षों ने देशों ने जोड़ा था लोगो ने विकास किया था सम्पन्न हुए थे। परिवार में भी सभी एक दूसरे को जाते हुये देख रहा है। सब जीरो क्या उसका बड़ा घर, पैसे, सोसाइटी सब बेकार कर दिया इस वायरस ने। अब सृष्टि में इससे भी खतरनाक कोई हथियार हो सकता है जिसमे न व्यक्तियों की जरूरत है न हथियार की न सोचने की न समझने की न सामने वाले के पास कोई बचाव । सिर्फ समय पास करने के अलावा कोई उपाय नही की इस वायरस की हद में मैं न आऊं। और सामने लोगो को तड़पता देखता रहू। सारा विज्ञान ,सारी सुरक्षाएं धरी की धरी रह गई। विश्व फिर वही खड़ा हो गया इस वायरस के आगे सिर्फ शून्य। जहा से चला था वही खड़ा।

 

मनोज शर्मा "मन"

महामंत्री, इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारतीं, दिल्ली 

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